व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> अपने बच्चे को बनाएँ विजेता अपने बच्चे को बनाएँ विजेताप्रदीप कपूर
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अधिकतर मामलों में, माता-पिता अपने बच्चों के साथ प्रयोग और ग़लतियाँ करने वाला तरीक़ा अपनाते हैं...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
परिचय
परवरिश एक कला है, जो बहुत कुछ सहज ज्ञान के
इस्तेमाल पर
निर्भर करती है। यह एक गंभीर काम है, इसीलिए कुछ अध्यायों में आप गंभीर
चर्चा पाएँगे। यह मनोरंजन से भरपूर अनुभव है, इसीलिए ख़ुशनुमा लम्हों के
लिए तैयार रहें। परवरिश आनंददायक कला है, इसीलिए निश्चित रूप से इस पुस्तक
को पढ़ना आपके लिए तृप्तिदायक अनुभव होगा। इस किताब में सहज ज्ञान तलाशने
की कोशिश करें, जो इसके हर वाक्य के पीछे छुपा हुआ है।
बड़े होते बच्चे उत्साह भरी उत्सुकता और जीवंतता का भंडार होते हैं। अपने विकास के दौरान अगर वे एक स्वस्थ माहौल पाते हैं, तो विजेता बनकर उभरते हैं। अगर इस अवधि के दौरान वे नाकामी या उपेक्षा का सामना करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास ढह जाता है और उपलब्धियों को पाने के लिए संघर्ष करने के बजाय वे पीछे हटने लगते हैं। ऐसे बच्चे असुरक्षा की भावना के शिकार हो जाते हैं और ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक करने लगते हैं।
आत्मविश्वास और सफलता एक-दूसरे के पूरक हैं। जो बच्चे ख़ुद के बारे में अच्छी सोच के साथ बड़े होते हैं, जिन्हें अच्छा इंसान होने की भावना का एहसास कराया जाता है और जिनके अपने माता-पिता, शिक्षकों और साथियों के साथ ग़र्मजोश तथा संतोषप्रद रिश्ते होते हैं, वे आमतौर पर ज़िंदगी में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को दिमाग़ी भावनात्मक और शारीरिक रूप से अनावश्यक प्रताड़ना न झेलनी पड़े। इससे उनका आत्मविश्वास चूर-चूर और क्षमताएँ कमतर हो सकती हैं।
बचपन में विकास की सबसे महत्वपूर्ण बात आत्मविश्वास जगाने, भावनात्मक स्थिरता क़ायम करने और जीवन की चुनौतियों तथा असंतोषों से संतुलित तरीक़े से व्यवहार करने की है। माता-पिता अपने बच्चों के लिए पहले आदर्श होते हैं, उन्हें अपने बच्चों के विकास की छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए गहन रूप से ज़िम्मेदार होना चाहिए। जो माता-पिता ख़ुद आत्मविश्वासी और उपलब्धियाँ पाने वाले होते हैं, वे अपने बच्चों में भी आसानी से ‘‘सर्वोत्तम’’ की इच्छा जगा लेते हैं।
अधिकतर मामलों में, माता-पिता अपने बच्चों के साथ प्रयोग और ग़लतियाँ करने वाला तरीक़ा अपनाते हैं। इस पुस्तक के ज़रिये इसी प्रयोगधर्मिता को परवरिश के एक कुशल जानकारीपू्र्ण तरीक़े में बदलने की कोशिश की गई है। बेशक, सफलता आगे बढ़ते जाने से मिलती है, पर यह देख लेना भी ज़रूरी है कि कहीं सफलता आपके बच्चे के साथ लगाव और प्यार भरे रिश्तों की क़ीमत पर तो नहीं मिल रही।
यह पुस्तक किसे पढ़नी चाहिए ? यह पुस्तक हर उस व्यक्ति को ज़रूर पढ़नी चाहिए, जो किसी बच्चे के साथ अभिभावक, दादा-दादी, शिक्षक या रिश्तेदार के रूप में जुड़ा हो। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे विशिष्ट हों और ज़िंदगी में सफल रहें। यह उसी स्थिति में संभव है, जब वे अपने बच्चों की कमज़ोरियों को दूर करें और मज़बूती को उभारें। इस पुस्तक को लिखने के पीछे इरादा परवरिश जैसे बड़े काम में अभिभावकों की मदद करने का है। एक तरफ़ यह पुस्तक नया नज़रिया लाने का इरादा रखती है, दूसरी तरफ़ यह समाज में पहले से ही मौजूद अच्छी आदतों को पुनः मज़बूती देने का प्रयास करती है। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि सभी बच्चे घर, स्कूल और समाज में अधिकतम प्यार, देखभाल एवं मार्गदर्शन पाएँ।
बड़े होते बच्चे उत्साह भरी उत्सुकता और जीवंतता का भंडार होते हैं। अपने विकास के दौरान अगर वे एक स्वस्थ माहौल पाते हैं, तो विजेता बनकर उभरते हैं। अगर इस अवधि के दौरान वे नाकामी या उपेक्षा का सामना करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास ढह जाता है और उपलब्धियों को पाने के लिए संघर्ष करने के बजाय वे पीछे हटने लगते हैं। ऐसे बच्चे असुरक्षा की भावना के शिकार हो जाते हैं और ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक करने लगते हैं।
आत्मविश्वास और सफलता एक-दूसरे के पूरक हैं। जो बच्चे ख़ुद के बारे में अच्छी सोच के साथ बड़े होते हैं, जिन्हें अच्छा इंसान होने की भावना का एहसास कराया जाता है और जिनके अपने माता-पिता, शिक्षकों और साथियों के साथ ग़र्मजोश तथा संतोषप्रद रिश्ते होते हैं, वे आमतौर पर ज़िंदगी में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को दिमाग़ी भावनात्मक और शारीरिक रूप से अनावश्यक प्रताड़ना न झेलनी पड़े। इससे उनका आत्मविश्वास चूर-चूर और क्षमताएँ कमतर हो सकती हैं।
बचपन में विकास की सबसे महत्वपूर्ण बात आत्मविश्वास जगाने, भावनात्मक स्थिरता क़ायम करने और जीवन की चुनौतियों तथा असंतोषों से संतुलित तरीक़े से व्यवहार करने की है। माता-पिता अपने बच्चों के लिए पहले आदर्श होते हैं, उन्हें अपने बच्चों के विकास की छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए गहन रूप से ज़िम्मेदार होना चाहिए। जो माता-पिता ख़ुद आत्मविश्वासी और उपलब्धियाँ पाने वाले होते हैं, वे अपने बच्चों में भी आसानी से ‘‘सर्वोत्तम’’ की इच्छा जगा लेते हैं।
अधिकतर मामलों में, माता-पिता अपने बच्चों के साथ प्रयोग और ग़लतियाँ करने वाला तरीक़ा अपनाते हैं। इस पुस्तक के ज़रिये इसी प्रयोगधर्मिता को परवरिश के एक कुशल जानकारीपू्र्ण तरीक़े में बदलने की कोशिश की गई है। बेशक, सफलता आगे बढ़ते जाने से मिलती है, पर यह देख लेना भी ज़रूरी है कि कहीं सफलता आपके बच्चे के साथ लगाव और प्यार भरे रिश्तों की क़ीमत पर तो नहीं मिल रही।
यह पुस्तक किसे पढ़नी चाहिए ? यह पुस्तक हर उस व्यक्ति को ज़रूर पढ़नी चाहिए, जो किसी बच्चे के साथ अभिभावक, दादा-दादी, शिक्षक या रिश्तेदार के रूप में जुड़ा हो। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे विशिष्ट हों और ज़िंदगी में सफल रहें। यह उसी स्थिति में संभव है, जब वे अपने बच्चों की कमज़ोरियों को दूर करें और मज़बूती को उभारें। इस पुस्तक को लिखने के पीछे इरादा परवरिश जैसे बड़े काम में अभिभावकों की मदद करने का है। एक तरफ़ यह पुस्तक नया नज़रिया लाने का इरादा रखती है, दूसरी तरफ़ यह समाज में पहले से ही मौजूद अच्छी आदतों को पुनः मज़बूती देने का प्रयास करती है। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि सभी बच्चे घर, स्कूल और समाज में अधिकतम प्यार, देखभाल एवं मार्गदर्शन पाएँ।
डॉ. प्रदीप कपूर
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